हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
तफ़सीर; अत्तार क़ुरान: तफ़सीर सूरह बकराह
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ هُدًى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَاتٍ مِّنَ الْهُدَىٰ وَالْفُرْقَانِ ۚ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ ۖ وَمَن كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِّنْ أَيَّامٍ أُخَرَ ۗ يُرِيدُ اللَّـهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ وَلِتُكْمِلُوا الْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُوا اللَّـهَ عَلَىٰ مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ शहरो रमज़ान अल लज़ी उनज़ेला फ़ीहिल क़ुरआन हुदल लिन्नासे व बय्येनातिम मिनल हुदा वल फ़ुरक़ान फमन शहेदा मिनकुम अश शहरा फ़लयसुम्हो वा मन काना मरीज़न ओ अला सफरिन फ़इद्दतो मिन अय्यामिन उखर योरीदुल लाहो बेकुम अल युस्रा वला योरीदो बेकुम अल उस्र वा लेतोकल्लेमिहिद्दता वा ले तोकब्बेरल्लाहा अला मा हदाकुम वा लाअल्लकुम तशकोरून। (बकरा, 185)
अनुवाद: रमज़ान का महीना (पवित्र) महीना है जिसमें कुरान प्रकट हुआ था, जो सभी मानव जाति के लिए एक मार्गदर्शन है, और इसमें सही और गलत के बीच मार्गदर्शन और अंतर के स्पष्ट संकेत मौजूद हैं, जो मौजूद है वतन (वतन) इस (महीने) में। (या जो कोई इसे पा ले) तो उसे रोज़ा रखना चाहिए, और जो बीमार हो या सफर में हो, उसे दूसरे समय में भी उतने ही रोज़े (रखने) चाहिए। अल्लाह तुम्हारे लिए आसानी और आराम चाहता है, वह तुम्हारे लिए कष्ट और कठिनाई नहीं चाहता और वह यह भी चाहता है कि तुम (रोज़े की) संख्या पूरी करो। और उस (एहसान) के लिए जो उसने तुम्हें सीधा रास्ता दिखाया, उसके गर्व और वैभव का इज़हार करो। ताकि तुम कृतज्ञ (सेवक) बन जाओ।
क़ुरान की तफसीर:
1️⃣ रमज़ान का महीना वह महीना है जो रोज़े के लिए निर्धारित किया गया है।
2️⃣ पवित्र कुरान रमज़ान के महीने में नाज़िल हुआ था।
3️⃣ रोज़े और पवित्र कुरान का गहरा संबंध है।
4️⃣ रमज़ान का महीना एक महान महीना है और इसकी एक विशेष पवित्रता है।
5️⃣ पवित्र कुरान सभी मनुष्यों के लिए मार्गदर्शन की पुस्तक है।
6️⃣ पवित्र कुरान में मार्गदर्शन के विभिन्न चरण और स्तर हैं।
7️⃣ पवित्र कुरान में सही और गलत के बीच अंतर जानने के लिए स्पष्ट तर्क और मार्गदर्शन हैं।
8️⃣ रमजान के महीने में बीमार या मुसाफिर पर रोजा रखना फर्ज है।
9️⃣ रोज़ा एक क्रमबद्ध पूजा है, लेकिन इस पूजा में प्रवृत्ति और सज्जनता होती है।
🔟 रोजा न रखने में सिर्फ सफर की नियत ही काफी नहीं है।
1️⃣ 1️⃣ रोजा इंसान के लिए आसान और आरामदायक जिंदगी हासिल करने और इस दुनिया और उसके बाद की कठिनाइयों से मुक्ति का कारण है।
1️⃣2️⃣ हर मुसलमान को साल में एक महीने रोजा रखना चाहिए।
1️⃣3️⃣ वाजिब का एक लक्ष्य ईश्वर की महानता की ओर ध्यान आकर्षित करना और उसकी महानता का वर्णन करना है।
1️⃣4️⃣ रोज़ा रखने से यजीदी दरगाह में धन्यवाद देने के लिए जमीन चिकनी हो जाती है।
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तफसीर राहनुमा, सूर ए बकरा